अंग्रेजी-साम्राज्य के खिलाफ़ आग उगलते आज़ादी के गीत
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|| समय आजादी को आयौ ||--1.
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तुम जगौ हिंद के वीर, समय आजादी को आयौ।
हमकू बननौ है अब ऐसे, हमारे तिलक-लाजपत जैसे
जिनके शब्दन में तासीर, समय आजादी को आयौ।
अपने वीर सुभाष सेनानी, गोरन की सेना थर्रानी
जिनके बड़े नुकीले तीर, समय आजादी कौ आयौ।
हमारे वीर भगतसिंह प्यारे, जो रण में कब हिम्मत हारे
जिनसे गोरे भये अधीर, समय आजादी कौ आयौ।
होली खूं से खेलौ भइया, बनि क्रान्ती-इतिहास रचइया
बदलौ भारत की तकदीर, समय आजादी कौ आयौ।
रामचरन मरि-मिटौ वतन
पै, गोरे जुल्म करें जन-जन पै
खींचौ खोलन ते शमशीर, समय आजादी कौ आयौ।
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+लोककवि रामचरन गुप्त
|| चलौ भारत की पीर हरौ ||---2.
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बिन विद्या भारत देश भयौ सब ही पटरौ ||
बिन विद्या के घोर अंधरिया घर-घर छाई है
विद्या की खातिर ‘सुभाष’ ने अलख जगाई है
चलो गोरन के गाल छरौ। बिन विद्या...
तुम रह गये अनपढ़-गंवार तो गोरे राज करें
लूटि-लूटि कें हम कूं
भइया अपनी जेब भरें
अरे मति अपनी मौति मरौ। बिन विद्या...
सोचौ समझौ तनिक विचारौ तजौ गुलामी कूं
मारि भगायौ भइया तुम अंग्रेज हरामी कूं
अरे तुम मन में जोश भरौ। बिन विद्या..
रामचरन तुम पढि़-लिखि जाऔ तो कछु बात बनै
घर-घर नव प्रकाश कूं
लाऔ तो कछु बात बनै
चलौ भारत की पीर हरो। बिन विद्या...
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+लोककवि रामचरन गुप्त
|| खूं से
नहाना पड़ेगा ||---3.
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ऐ अंग्रेजो खूं से नहाना पड़ेगा
ऐ गोरो भारत से जाना पड़ेगा
हमें फिर सुदर्शन उठाना पड़ेगा |
तुम्हारी गुलामी को हम तोड़ देंगे
न सोचो कि जिन्दा तुम्हें छोड़ देंगे
तुम्हें अब वतन से भगाना पड़ेगा।
कटती हैं गायें, छुरा नित्य चलता
बहें रक्त-नाले,
खूं है उबलता
मलेच्छों को फिर से मिटाना पड़ेगा।
अर्जुन ने गीता का उपदेश पाया
हाथों में अपने गांडीव उठाया
वही पाठ सबको पढ़ाना पड़ेगा।
बचेगा न भारत में कोई डायर
बेकार हैं सब तुम्हारे ये फायर
ऐ अंग्रेजों खूं से नहाना पड़ेगा।
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+लोककवि रामचरन गुप्त
।। लाज जाकी हम राखें।।----4.
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रे हमकूं प्राणन ते प्यारौ है हिन्दुस्तान लाज जाकी
हम राखें।।
आजादी का रंग-तिरंगा लहर-लहर लहरावै है
वीर सुभाष चन्द्रशेखर की कुर्बानी कूं गावै है
ए रे सूर कबीरा के जा में हैं मीठे गान, लाज जाकी हम राखें।
रामचरन रचि रहयौ रात-दिन रे गर्वील गाथाएं
विजय विहीन दीन होने से बेहतर हैं हम मर जाएं
ए रे हमकूं बननौ है भारत के वीर जवान, लाज जाकी हम राखें।
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+लोककवि रामचरन गुप्त
|| जय-जय वीर जवान ||---5.
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अरे तेरी बढ़ती जाये शान, कदम चुन-चुन रखना।
लहर-लहर लहराये झंडा,
ये हम सबका का प्यारा हो
वीर सुभाष कहें एक बानी इंकलाब का नारा हो
इज्जत की खातिर शेखर भी हो बैठे कुर्बान,
कदम चुन-चुन रखना।
खूब तिरंगा रंग देश में चहल-पहल दिखलाता है
अंग्रेजी सेना का डायर मन अपने घबराता है
ऊधम सिंह ने आडायर
की पल में ले ली जान,
कदम चुन-चुन रखना।।
भगतसिंह फांसी के फंदे पर अपना दम तोड़ा था
गुरु ने लाल चिने हंस-हंसकर क्या ये साहस थोड़ा था
रामचरन अब लड़ौ लड़ाई करि के पूरा ध्यान,
कदम चुन-चुन रखना।।
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+लोककवि रामचरन गुप्त
|| चुनरिया मेरी अलबेली ||----6.
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एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज, चुनरिया मेरी अलबेली।
पहलौ रंग डाल
देना तू विरन मेरे आजादी कौ
और दूसरी होय चहचहौ इन्कलाब की आंधी कौ
ऐरे घेरा डाले हों झांसी पै अंगरेज, चुनरिया मेरी अलबेली।
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज, चुनरिया मेरी अलबेली।|
‘भारत गोरो फौरन छोड़ो’ ये जनता का नारा हो
आजादी है जन्मसिद्ध अधिकार
‘तिलक’ ललकारा हो
ऐरे ‘लाला’ लाटी तै पड़े हों निस्तेज, चुनरिया मेरी अलबेली।
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज, चुनरिया मेरी अलबेली।।|
जगह-जगह तू चर्चे करना
क्रान्तिवीर गाथाओं के
मुखड़े और अंतरे लिखना बिस्मिल की रचनाओं के
एरे अशफाकउल्ला की कविता का भरना तेज,चुनरिया मेरी अलबेली|
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज, चुनरिया मेरी अलबेली।।
‘वीर सुभाष’ बने
सेनानायक अरिदल से लड़ते हों
‘सूर्यसेन’ अपनी
सेना ले संग फतह को बढ़ते हों
एरे ले आ चुनरी
में वीरन ‘चटगांव विलेज’,चुनरिया मेरी अलबेली |
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज, चुनरिया मेरी अलबेली।।
भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु सांडर्स के घेरे हों
और चन्द्रशेखर मुंडेर पर निगरानी को बैठे हों
एरे दर्शा वीरन रे तू ‘लाहौरी कालेज’, चुनरिया मेरी अलबेली।
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज, चुनरिया मेरी अलबेली।।
फायर-फायर पड़े सुनायी
वो ‘जलियां का बाग’ बना
भारत की जनता को डसता वीरन ‘डायर नाग’ बना
एरे बदला लेने तू फिर ऊधमसिंह
कूं भेज, चुनरिया मेरी अलबेली।
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज, चुनरिया मेरी अलबेली।।
कितनी हिम्मत कितना साहस रखता हिंदुस्तान दिखा
फांसी चढ़ते भगतसिंह के अधरों पर मुस्कान दिखा
एरे रामचरन कवि की रचि वतन परस्त इमेज, चुनरिया मेरी अलबेली।
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज, चुनरिया मेरी अलबेली।।
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+लोककवि रामचरन गुप्त
।।शेखर वीर बड़ा लासानी है||----7.
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शेखर वीर बड़ा लासानी है, अंग्रेजों से लडूं युद्ध
की ठानी है।
निशाना जिस पर साधा , वही पर लोक सिधारा
सोच रहे अंगरेज आज तो मुंह की खानी है।
न देखे पीछे आगे, दनादन गोली दागे
लाशें बिछी जिधर भी उसने पिस्टल तानी है।
गोलियां कईं लगी पर, चेतना साथ न छोड़ी
मान रहे अंगरेज वीर यह बड़ा गुमानी है।
बची जब अन्तिम गोली, दाग ली अपने ऊपर
रामचरन ‘आजाद’ रहें वीरों की वानी है।
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+लोककवि रामचरन गुप्त
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