लोककवि रामचरन गुप्त’ का 3 चर्चित ‘होली-गीत’
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।। खून से खेलें होली।।---1.
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भारतवासी भारत मां हित तन-मन दें बलिदान
कभी न हिम्मत हारें रण में दुश्मन को ऐलान
चलायें डट कर गोली, खून से खेलें होली।
पीछे कदम न होगा जब तक सांस हमारी
दे दें जान वतन की खातिर भारत भू है प्यारी
अपना नारा हिन्द हमारा सुनें सभी श्रीमान
चलायें डटकर गोली, खून से खेलें होली।
एक-एक कतरा खूं का है
बारूदी गोला
अरि के निशां मिटा देंगे हम पहन बसंती चोला
अति बलशाली वीरमयी है अपना हिन्दुस्तान
चलायें डटकर गोली, खून से खेलें होली।
लहर-लहर लहराये अपना विजयी
विश्व तिरंगा
भारत मां की जय हम बोलें, बोलें हर-हर गंगा
बढ़-बढ़कर हम लड़ें लड़ाई,
हम हैं वीर जवान
चलायें डटकर गोली, खून से खेलें होली।
सर से बांधे हुए कफन हम देते हैं कुर्बानी
कल इतिहास लिखेगा अपनी यारो अमर कहानी
वन्देमातरम् रामचरन कहि अपना देश महान
चलायें डटकर गोली, खून से खेलें होली।
+ लोककवि रामचरन गुप्त
।। मति गुमान में रहना ।।
होली खेलि री गुजरिया डालूं में रंग या ही ठांव री।।
गोकुल कूं तू छोडि कंस के घर काहे कूं जावै
लौटि कंस की नगरी ते तू काली पीली आवै
तेरी फोडूंगो गगरिया, डालूँ मैं रंग या ही ठाँव री।।
होली खेलि री गुजरिया डालूं में रंग या ही ठांव री।।
मलूँ गुलाल अबीर मोहिनी मानि हमारा कहना
कोधी कामी क्रूर कंस के मति गुमान में रहना
लेलूं बाऊ की खबरिया, डालूँ मैं रंग या ही ठाँव री।।
होली खेलि री गुजरिया डालूं में रंग या ही ठांव री।।
ओ मृगनैनी गूँथे बैनी चली कहाँ सिंगार किये
कंचन काया वारी प्यारी मतवारी मदहोश हिये
तेरी रोकि कें डगरिया डालूं मैं रंग या ही ठांव री।।
होली खेलि री गुजरिया डालूं में रंग या ही ठांव री।।
मधुवन में मन लगै न तैरो भावै कंस नगरिया
रामचरन इतराय रही तू काहे बोल गुजरिया
लेले हाथ पिचकरिया, डालूँ मैं रंग या ही ठाँव री।
होली खेलि री गुजरिया डालूं में रंग या ही ठांव री।।
+ लोककवि रामचरन गुप्त
|| चुनरिया मेरी रंग डारी ||
" ऐरे होली खेली रे कान्हा ने मेरे संग
, चुनरिया मेरी रंगि डारी ||
पिचकारी
लयी हाथ साथ में ग्वालन की टोली आयी ,
गालन
मलै गुलाल बोलतौ होले-से ' होली आयी ' |
एरे
कान्हा कुंजन में भिगोवै अंग-अंग , चुनरिया
मेरी रंगि डारी ||
जिय
गोवर्धन गिरवरधारी गैल-गैल पै खड़ा मिलै ,
कबहु
चढे कदम्ब की डारन ,
कबहु अटारी चढ़ा मिलै |
एरे
नाचु दिखावै रे बजावै कबहु चंग , चुनरिया मेरी रंगि डारी ||
कबहू
मारे कीच ,
कबहू जिय सबके टेसू फूल मलै
होली
खेलै कम ,
जिय ज्यादा अंखियन कूं मटकाय
मिलै ,
एरे
रामचरन संग में पी आयो कान्हा भंग , चुनरिया मेरी रंगि डारी
+ लोककवि रामचरन गुप्त
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