Friday, March 25, 2016




लोककवि रामचरन गुप्तके चर्चित भक्ति-गीत
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भक्ति-गीत—1.
 || कुंजर उबारा ||
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भक्तों की बात प्रभु आपकी ही बात है
आपके ही हाथ मेरी लाज दिन रात है।

होकर दुखित द्रोपदी जब पुकारी
करतार कर तार दीया सब तारी
दुष्ट दल देख दृष्य कांपत हर गात है।

नरसी भगत से प्रेम था पुराना
आकर लुटाया सब आपने खजाना
चाकर बने और भरौ जाय भात है।

गज हित ग्राह को जल में संहारा
उसको बचाया तुम, जिसने पुकारा
कुंजर उबारा बात जग विख्यात है।
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+लोक कवि रामचरन गुप्त



भक्ति-गीत—2.
।। रामचरन चरनों में ।।
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जग के स्वामी अन्तर्यामी भेंट करूं क्या तेरी।

इस जग में हम ऐसे विचरें जैसे योगी जोगी
शरण तिहारी हम हैं प्रभुजी भक्ति-रस के रोगी
धन सम्पत्ति वैभव से विरत दृष्टि है मेरी।
जग के स्वामी अन्तर्यामी भी करूं क्या तेरी |

जो धन-यौवन अपना मानें वे हैं भूला सारे
तुम बिन हाय सहाय न मेरे देख्यौ बहुत विचारे
तुम तक आते-आते मिलती किरणें धवल घनेरी
जग के स्वामी अन्तर्यामी भेंट करूं क्या तेरी।

अपना तो तन धन मन सब कुछ प्रभु रहा तुम्हारा
जब चाहे तब इसको लेना नहिं कछु जोर हमारा
रामचरन चरणों में अर्पित लेउ भक्ति बिन देरी
जग के स्वामी अन्तर्यामी भेंट करूं क्या तेरी।
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+लोककवि रामचरन गुप्त



भक्ति-गीत—3.
|| कैकयी ने का कुमति विचारी ||
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राम भयौ वनगमन एकदम मचौ अवध में शोर।
रोकि रहे रस्ता पुरवासी चलै न एकहु जोर।

त्राहि-त्राहि करि रहे नर-नारी,
छोडि़ चले कहां अवध बिहारी,
साथ चली मिथिलेश कुमारी औ’ सौमित्र-किशोर।

ठाड़ी-ठाड़ी गऊ रम्हावें,
पशुपक्षी सब नीर बहावें,
रोवें तोता, मैंना, हंसा, औ’ जंगल में मोर।

कैकेयी नै का कुमति बिचारी
भरत कू राज राम वनहारी
अधरम में रत भयी पापिनी धरम से नाता तोर।

बाल 'रमेश' कहें कवि ऐसे,
बिलखत सब पुरवासी ऐसे।
चौखन दूध मात सुरभी की बिलखत बछरा भोर।
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[लोककवि रामचरन गुप्त द्वारा यह गीत अपने पुत्र रमेशराज की वाल्यावस्था में मंचों पर गाने के लिए लिखा ]



भक्ति-गीत—4.
।। मैं विनती करूं मुरारी ।।
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ओ अतिंम समय मुरारी, तुम रखना याद हमारी।।

पुतली फिर जायें आंखों की
जब प्राण कंठ में बोले
व्याकुल हो जब जीवन की
ये डगमग नैया डोले
तब टेरूं मैं गिरधारी, तुम रखना याद हमारी।

यम के दूत पकड़ने मुझको
जिस पल माधव आयें
प्राण मेरे घबरायें
यम भी भारी त्रास दिखायें
मैं विनती करूं तुम्हारी, तुम रखना याद हमारी।

तब आकर घनश्याम मुझे
तुम सूरत जरा दखाना
मुझ जैसी पापिन को तब
तुम करुणा हस्त बढ़ाना
मैं जोहूं वाट तिहारी, तुम रखना याद हमारी।

क्या तुम महापातकिन कूं
अब दर्शन देने आओगे
मोहन क्या विश्वास रखूं
तुम अब दौड़े आओगे
मै हूं हतभागिन भारी, तुम रखना याद हमारी।
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+लोककवि रामचरन गुप्त



भक्ति-गीत—5.
|| रामचरन तब अति हरषात है ||
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कृष्ण की सुदामाजी से होनी आज बात है
पहली मुलाकात है जी पहली मुलाकात है।

लखकर सुदामा को बनवारी रोये
नैनों के जल से पग उनके घोये
प्रेम में विभोर हुए पुलकित अति गात है।

बोले फिर कान्हा- ये तो बताओ
भाभी ने भेजा है क्या क्या दिखाओ
माधव की बात सुन विप्र संकुचात है।

चावल की खींची पुटरिया मुरारी
तंदुल फिर खावत हैं खुश हो के भारी
रामचरन तब अति हरषात है।
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+लोक कवि रामचरन गुप्त



भक्ति-गीत—6.
।। लज्जा हाथ तुम्हारे ।।
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द्रोपदि हो दुखित पुकारे,
अब आओ द्वारिका प्यारे।|
केश पकड़ दुःशाहसन स्वामी बीच सभा में लाया
मोकूँ  रह्यौ उघारी, मन में तनिक नहीं शरमाया
पांडव सब हिम्मत हारे,
अब लज्जा हाथ तुम्हारे।

होनी के चक्कर में फंसि के होय आज अनहोनी
भीष्म द्रोणाचार्य विदुर ने साध रखी है मौनी
बैठे सब गरदन डारे,
इन मुख लग गये तारे।
द्रोपदि हो दुखित पुकारे,
अब आओ द्वारिका प्यारे।|

शकुनी और करण-दुर्योंध  हंसि हंसि पीटत तारी
नतमस्तक होकर बैठे है अर्जुन से बलधारी
मणि बिन विषियर कारे,
विवश भूमि फन मारे।
द्रोपदि हो दुखित पुकारे,
अब आओ द्वारिका प्यारे ||

पांचों पति के होते मेरी लाज जाय गोपाला
रामचरन अब रक्षा मेरी करना प्रभु कृपाला
संकट हैं मुझ पर भारे,
मोकूं लूटें हत्यारे।
द्रोपदि हो दुखित पुकारे,
अब आओ द्वारिका प्यारे ||
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+लोक कवि रामचरन गुप्त



भक्ति-गीत—7.
।। रामचरन हिय दुख अति भारी।।
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खायौ विषधर कारे नै, दै रह्यौ झाग रे
कब कौ तैने बदलौ लीनौ बनकर के नाग रे।

फन फैलायौ आज, हाथ से उड़ौ जाय मेरौ तोता रे
दुखियारी कूं और दुक्ख दै नींद चैन की सोता रे
रुठि गयौ करतार हमारौ फूटि गयौ भाग रे।

तन ढकने को नहीं वस्त्र हैं बनता कोई काम नहीं
कैसी उल्टी दशा बन गयी रहयौ हमारो धाम नहीं
छाती के सम्मुख मेरौ लाला बनि गयौ आग रे।

पिया अछूत की करी चाकरी राजपाट सब छूटौ है
विधिना नै कैसौ करि दीनौ हाय नसीबा फूटौ है
तक ढकने को वस्त्र नहीं लागौ कैसौ दाग रे।

लेकर लाल चली जब तारा फिर  मरघट में रोय परी
रामचरन हिय दुख अति भारी आयी कैसी अशुभ घरी
रोती है तारा जल्दी से लाला मेरे जाग रे।
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+लोक कवि रामचरन गुप्त



भक्ति-गीत—8.
|| मनमोहन नटनागर की छवि ||
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मीठी-मीठी प्यारी-प्यारी बाजी रे मुरलिया
सुन मुरली की तान बावरी बृज की भयीं गुजरिया।

तजि कें कामधाम सब दौड़ी-दौड़ी आयीं रे
मनमोहन नटनागर की छवि देखि-देखि मुस्कायीं रे
सुध-बुध खोय गयी सब गोपी देखि-देखि सांवरिया।।

सुन-सुन टीस उठै हियरा में अमृत-सौ रस घोलै रे
मुरली मीठौ-मीठौ मोहन के अधरन पै बोलै रे
अति मस्तानी राधा रानी तन की भूल खबरिया।

रामचरन कहें वंशी की धुन हम भी सुनने जाएंगे
वंशीवारे मनमोहन के दर्शन कर हरषाएंगे
गिरधर की छवि देखि छलकती नैनन की गगरिया।।
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+लोक कवि रामचरन गुप्त



भक्ति-गीत—9.
।। तुमको रहे पुकार ।।
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एक लाख गउअन के ग्वाला कहां गये कृष्णमुरार
आ हम सजनी ढूढेंगे जमुना के पार।

गोकुल गोधन वृन्दावन को छोड़ गये
हमसे कान्हा क्यूं कर नाता तोड़ गये
गउ माता सब रुदन मचा में रोवें सब नर नार।

सिसकत तड़पत रोबत डोलें नर नारी
सूने जीवन नन्द के कीने गिरधारी
बैठि गये अकू्र के रथ में तनक न करी अबार।

ललिता और विसाखा के मन ज्वाला है
भागे भक्त छोड़कर कंठी माला है
रामचरन कहें कान्हा ने सब छोड़े ग्वाल गंवार।
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+लोक कवि रामचरन गुप्त



भक्ति-गीत---10.   
|| चलौ न जायै अब हमसे ||

ए रे मुनिवर बतलाऔ है काशी कितनी दूर
चलौ न जावै अब हमसे।

भूखे प्यासे गैल कटै ना, तन कूं धूप जलावै है
कबहू कांटौ, कबहूं कांकर कदम-कदम चुभ जावै है,
एरे भरि गये छालों से ये पांव भये मजबूर
चलौ न जावै अब हमसे।

सुख वैभव थे राजमहल के और सेज थी फूलन की
आविंगे ऐसे दिन औंधे पता कहां थी जीवन की
एरे उमर कटी अब तक तौ खाय-खाय अंगूर
चलौ न जावै अब हमसे।

जल्दी कहूं बेचकर हमकूं अपनौ कर्ज चुकाऔ जी
हमहूं पावें मुक्ती तुमसे तुमहूं मुक्ती पाऔ जी
एरे रामचरन भी इनके दुख से है भरपूर
चलौ ना जावै अब हमसे।
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+लोककवि रामचरन गुप्त

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